
रामपुर 31 मई 2020। हम वाहवाही के लिए काम नहीं करते, आशा कार्यकर्ता होने के नाते मैने यह ठाना है कि अपने मोहल्ले में एक भी कोरोना संक्रमित न होने दू। यह कहना है मुस्कान का। कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में आशा कार्यकर्ता पैदल एक ऐसा युद्ध लड़ रही हैं जो करोड़ों लोगों को सुरक्षित रख रहा है। वे भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था का ज़मीनी स्तर पर पहला सुरक्षा घेरा हैं। बात गांव की हो या शहर की। आशा कार्यकर्ता आज जीवन रेखा की केन्द्र बिन्दु बन चुकी है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के आंकड़ों के अनुसार सितंबर 2018 तक देश में कुल आशा कार्यकर्ताओं की संख्या लगभग 10 लाख 31,751 है। एनएचएम के जिला कम्यूनिटी प्रोसेसिंग मैनेजर प्रभात कुमार ने बताया कि मार्च २०२० तक उत्तर प्रदेश में एक लाख चौंसठ हजार सक्रीयआशा कार्यकर्ता है और जनपद रामपुर में एक हजार छह सौ चौंसठ ग्रामीण व 58 शहर में है। कोविड 19 का सामुदायिक संक्रमण के फैलाव के रोकने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। आयुर्जीवनम् सेवा समिति के आशा प्रशिक्षक डा० कुलदीप सिंह चौहान ने कहा कि आशा क्वारंटाइन किये लोगों की जानकारी लेते रहना, देखना कि उन्हें सर्दी, जुखाम, बुखार तो नहीं आ रहा। गाँव में कितने लोग दूसरे राज्यों से आये हैं, कितने लोगों की कोविड-19 की जांचे हुई हैं या होनी हैं। कोरोना वायरस संक्रमण के पहले चरण में हर घर का सर्वे किया और बीमार लोगों को चिंहित किया। दूसरे चरण में बाहर से आये लोगों की सूची बनाई और क्वारंटाइन हुए लोगों का 14 दिन तक फालोअप किया। दीवारों पर स्लोगन लिखे जा रहे तो कहीं ढोलक की थाप पर गीत-संगीत से ग्रामीणों से घर पर रहने की अपील की जा रही है। कहीं गोल घेरे बनाकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा रहा तो कहीं ये आशा घर-घर दवाइयां पहुंचा रही हैं। ग्राम एवं वार्ड स्तर पर गठित निगरानी समिति के सदस्यों से प्रतिदिन मिलकर संक्रमण के फैलाव रोकने में आशा एक जागरूक पर्सन की भूमिका निभा रही है। पेश है केविड 19 के गुमनाम योद्धाओं की ग्राउंड रिर्पोट
मुस्कान ने बताया कि दूसरे शहर से वापस आये लोगो को 21 दिन के लिए होम क्वारंटाइन होना था, लेकिन कुछ लोग इसका उल्लंघन करने की कोशिस कर रहे थे हमने निगरानी समिति के अध्यक्ष प्रधान को बताया और आग्रह किया कि इनका घर से बाहर निकलना पूरे गांव के लिये खतरा बन सकता है। प्रधान ने हमारी बात तुरंत समझी और हमारे साथ आकर उल्लंघन करने वाले परिवार को समझाया। गांव के लोग इस बीमारी के बारे में पहले दिन से जागरूक हो रहे है। दूूूसरेे लोक डाउन के समय मेरेे मोहल्ले में महिला को प्रसव का समय आ रहा था। वो बाहर के रहने वाले थे। दूसरे जिलेे में जानेे के पास बनवाने में मदद की। वह सही समय पर अपने जिले पाहुुच गए। और दो दिन बाद ही सकुुुशल एक बच्चे को जन्म दिया।