रामपुर
बरेली में कार्यरत ई टी वी के रिपोर्टर हिमांशु जी की बाइक कुछ दिन पहले डिवाइडर से टकरा गई थी , जिससे उन्हें गम्भीर चोटें आई थी , जिसके बाद उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था , इलाज चलने के आज पांचवे दिन उनका एम्स में स्वर्गवास हो गया
दीप जोशी
हिमांशु जिस्म से भले आज इस जहाँ में नहीं हैं, लेकिन उनकी रूह की रौशनी में उनकी यादें हमेशा तारों ताजा रहेंगी , हर एक उनके चाहनेवालें उनकी इस गुमशुदगी को शायद मुश्किलों से बर्दास्त कर पायें , पर कुदरत कि इस मर्जी के आगे हम सब उनके चाहने वाले मजबूर हैं , ईश्वर उनकी अपनी शरण दें , उनके अपनो को उनके बिना जिन्दगी जीने की हिम्मत और हौसला दें।
प्रदीप कुमार
हिमांशु जी ने अपने पत्रकारिता के माध्यम से समाज की कई उपेक्षित मामलों को मुख्य धारा में रखा और उनका समाधान कराया, पत्रकारिता के मुख्य उद्देश्य से वो कभी में मुखर नहीं हुए, पत्रकारिता के केंद्र से जुड़े सभी सामाजिक , अपराधिक मामलों को बड़ी निर्भीकता और शिद्धता के साथ उजागर किया , उनकी जिन्दा दिली , हंस मुख स्वभाव और स्नेह के भाव उनके रामपुर से ट्रान्सफर होने के बाद भी मुझे और उनके सभी साथियों को उनसे अलग नहीं कर पायें ।
शानू कादरी
हिमांशु जी के बुलंद हौसले और हिम्मत, दोस्तों कि कमियों का मजाक ना बनाकर उनकी कमियों को दूर करने कि उनकी आदत का में हमेशा कायल रहा रहा हूँ , रामपुर में उनके साथ बिताये पल में कभी नहीं भुला पायूँगा , मेरे दिल में हिमांशु जी हमेशा जिन्दा रहेंगे , सभी पत्रकारों को आपस में संघटित करना , रामपुर में मीडिया क्लब की स्थापना का श्रेय हिमांशु जी को जाता है , उन्होंने जो पत्रकार एकता की आवाज बुलंद की थी , उस पत्रकार एकता को हम बनाये रखेंगे
आज़म खान
हिमांशु जी के साथ मेरा दिली जुडाव रहा है , दूर दृष्टी और पक्का इरादा , वादों के पक्के हिमांशु जी इस दुनिया में भले नहीं हैं लेकिन हमारें दिलों में वो आज भी जिन्दा रहेंगे , उनकी राजनीतिक समझ, वाक पटुता, और उनकी तार्किक छमता ने उन्हें पत्रकारिता के छेत्र में विशेष पहचान दी, उनका जाना पत्रकारिता के छेत्र में बड़ा नुकसान है , इसकी भरपाई मुश्किल है
अल्लाह उनको जन्नत बक्शे
शन्नू खान
आज दिल की कैफ़ियत अजीब है लेकिन इसके ऊपर जिंदगी की जद्दोजहद तारी है। हिमांशु एक ऐसा अजीज जो कभी अब मुझसे बात नहीँ करेगा। जिससे मैंने बहुत कुछ सीखा , जिसने मुझे हर पल हँसाया। उसकी ढेर सारी यादें यही सिखायेंगी कि नाराज़गी को ढोना नहीँ चाहिये , छोटे छोटे ईख्तेलाफात ख़त्म जल्द होने चाहिये जो उसने अपने फौत होने के बाद सिखाया। हिमांशु की दिली ख्वाहिश थी कि वह एक किताब लिखे लेकिन मुझे महसूस होता है की हिमांशु की जिंदगी मुकम्मल किताब थी। इस इत्तेला पर यकीं नहीँ होता लेकिन मौत बरहक है। अल्लाह उस नेक दिल हँस मुख इंसान की मग्फिरत करे उसके गुनाहों को माफ करे और उसकी रूह को जन्नत का दरोगा बनाये .आमीन !!! अल्लाह !!! अजीजो अकारिब को सब्रे जमील अता फ़रमाये..आमीन !!!
संदीप सिंह गुसैन
बात वर्ष 2010 की है जब पहली बार मैं अल्मोडा गया था। मेरो पहाड की शूट के दौरान वहां बडे भाई हिमांशु गिरि से मुलाकात हुई।हिमांशु भाई ने जिस गर्मजोशी से स्वागत किया वो हमेशा यादगार रहेगा। कुमाउनी संस्कृति परम्पराएं और समस्याओं को जितनी शिद्दत से हिमांशु भाई ने उठाया वो हमेशा याद रहेगा।उस दौरान हमने कई मुद्दों पर चर्चा की और गोल्जू देवता,अल्मोड़ा शहर की कई खबरें भी की। उसके बाद उनका ट्रान्सफर रामपुर हो गया। लेकिन हिमांशु भाई ने जो अपने अल्मोड़ा कार्यकाल के दौरान पहाड़वासियों का दिल जीत लिया।हमेशा याद आओगे दाज्यू……………….
पीयूष राय
नोवेल्टी चौराहे पर नाज़िम की चाय की दुकान पर शाम मे अक्सर पत्रकारों का जमावड़ा लगता हैं। प्रेस क्लब की कमी को भुनाने का शायद यह एक प्रयास था जहाँ छोटे बड़े मीडिया घराने के सभी पत्रकार दिन भर में एक बार मत्था ज़रूर टेक जाते थे। छोटी क़द काठी के हिमांशु गिरी से मेरी सैकड़ों मुलाक़ातें यही चाय पर हुई है। जब ख़बरों पर वाद विवाद और बहस का दौर शुरू होता था तो वह देर रात ही थमता था। कई ख़बरों पर साथ काम करने का भी मौक़ा मिला लेकिन अब सब थम जाएगा। यह ज़िंदगी अगर रंगमंच है तो आज एक किरदार हमेशा के लिये कम हो गया। आज शोक की लहर है कल तक रंगमंच के बाक़ी किरदार अपनी अपनी जद्दोजहद मे मशगूल हो जाएँगे और शायद मेरे साथ भी यही होगा। पीछे मुड़ देखना अब बेमानी होगी, बस यादों का कारवाँ होगा।