दिल्ली के बाद 23 अगस्त को लखनऊ में रखी जाएगी प्रार्थना सभा
अटलजी ने 16 अगस्त को एम्स में अंतिम सांस ली भाजपा के मुताबिक, उनकी याद में देश भर में प्रार्थना सभाएं होंगी
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए इंदिरा गांधी स्टेडियम में सोमवार को प्रार्थना सभा रखी गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- अटलजी ने विचारधारा से कभी समझौता नहीं किया। राज्यसभा नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा- जीवनभर अटलजी ने सबको साथ लाने का काम किया और मृत्यु के बाद भी सबको एक कर गए। ऐसे लोग बहुत कम होते हैं।
मोदी ने कहा, “अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिंदुस्तान कश्मीर को लेकर जवाब देता रहता है। हर बार कश्मीर पर भारत को घेर लिया जाता है, लेकिन अटलजी आतंकवाद के मुद्दे पर सारे विश्व को भारत के साथ लाने में सफल हुए। जीवन कितना लंबा हो, ये हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन जीवन कैसा हो, ये हमारे हाथ में है। अटलजी ने इसे जीकर दिखाया कि जीवन कैसा हो, क्यों हो, किसके लिए हो और कैसे हो। किशोरावस्था से लेकर जीवन के अंत तक शरीर ने जब तक साथ दिया, वे देश के लिए जिए। देशवासियों के लिए, उसूलों के लिए, सामान्य मानव के अरमानों के लिए जिए।”
आडवाणी ने कहा– खाना बहुत अच्छा बनाते थे: लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा, “मैं तो अपने को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मेरी मित्रता अटलजी से 65 साल से रही है। 65 साल से मैंने उनको निकट से देखा है। उनके साथ-साथ मिलकर कई सारे अनुभव किए। सिनेमा भी साथ-साथ देखते थे। पुस्तकें भी साथ-साथ पढ़ते थे। अटलजी भोजन बहुत अच्छा पकाते थे। उनके साथ-साथ रहते हुए मुझे इसका बहुत अनुभव हुआ। आज इस सभा में मैं अटलजी की अनुपस्थिति में बोल रहा हूं, इसका दुख है, कष्ट है। मैंने उनसे बहुत सीखा है, बहुत पाया।”
राजनाथ सिंह ने कहा– अटलजी की छवि अटल, अविचल: राजनाथ सिंह ने कहा, “ये सच होते हुए भी अहसास नहीं हो रहा है कि अटलजी हमारे बीच नहीं हैं। जो भी अटलजी को जानता है.. उनकी छवि से प्रभावित हुआ है। यदि मैं कहूं कि अटलजी की छवि आज भी अटल है, अविचल है तो गलत नहीं होगा। मैं यह मानता हूं कि अटलजी को लोकप्रियता देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद हासिल नहीं हुई, पहले भी उन्हें ऐसी ही लोकप्रियता हासिल थी। नेहरू जी ने 35-40 साल की उम्र में ही अटलजी को पहचान लिया था कि यह व्यक्ति भारत का भावी प्रधानमंत्री है। अटलजी के काल में हमने युद्ध और कूटनीति, दोनों मैदानों में जीत हासिल की।”
राजनाथ सिंह ने कहा, “मैं अपने जीवन की एक घटना बताता हूं। 1991 में मैं उत्तर प्रदेश का शिक्षा मंत्री था। अटलजी लखनऊ के सांसद थे। एक स्कूल के प्रबंधक ने उनसे कहा कि शिक्षा मंत्री से मेरा काम करने के लिए पत्र लिख दें। उन्होंने लिख दिया। मैंने भी वह काम कर दिया। आदेश जारी होने तक 10-12 दिन का वक्त लग गया। प्रबंधक फिर अटलजी के पास फिर गए कि फिर लेटर लिख दीजिए। तब अटलजी ने लिखा था- अब विलंब कहु कारण कीजै, तुरत कपिन प्रभु आयसु दीजै। इसके बाद मैंने उन्हें फोन करके बताया कि मैंने ये काम पहले ही कर दिया था।”
गुलाम नबी आजाद ने कहा– कश्मीर से कन्याकुमारी के लोग सभा में आए: राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा, ” आज तक मैंने कई सभाएं देखीं, श्रद्धांजलि अर्पित की। लेकिन ये सभा अपने आप में एक अद्भुत सभा है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के लोग यहां आए हैं। विचारधाराएं अलग हैं। जब तक वे जीवित रहे, उनका प्रयास सबको साथ लेकर चलने का रहा। वे मृत्यु के बाद भी सबको एकसाथ जमा कर गए। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो अपनी मौत के बाद भी दूरियों को कम करते हैं और वो आज स्टेडियम में नजर आ रहा है। मैंने पार्टी से हटकर उनकी सभाओं को सुना है। शायद इसीलिए मिर्जा गालिब ने कहा था- इतने शीरी हैं तेरे लब कि रकीब गालियां खाके बे–मजा न हुआ। अटलजी विरोध भी करते थे तो बुरा नहीं लगता था।
आजाद ने अपने संबोधन में एक शायरी भी कही- हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है, चमन में दीदावर पैदा।
सभा में ये नेता रहे मौजूद: सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, जम्मू- कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत, अमर सिंह, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन, योग गुरु समेत कई राजनेता शामिल हुए।